1
लो टूट प्रेम के गए,सुन्दर थे जो कांच।
आज दिलों पर कर रही,नफरत नंगा नाच।।
2
प्रेम धागा तोड़ चला,बाँधा हमसे बैर।
समझे जिसको अपना हम,हुआ आज वो गैर।।
3
दूर गया कोई नहीं, सब हैं रहते पास।
मन को फिर क्या सालता, हरपल रहे उदास।।
4
हैरान हूँ मैं देखकर,झूठ के ठाठ-बाट।
तिकड़मबाजी का चलन,सच है बिकता हाट।।
5
देत अल्लाह बांग तू,काम करे जल्लाद।
बेटा झगडे बाप ते,होवे खुद बर्बाद।।
6
हाथ थाम आतंक का,करते फिरें विनाश।
पेशावर जैसी भले,बिछती जाएँ लाश।।
7
अशिक्षा नर्क समान है, काहे करती खेद।
ज्ञान दीप जलाकर तुम,अन्धकार दो भेद।।
सपना मांगलिक
फ659 कमला नगर
आगरा
sapna8manglik@gmail. com
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