Tuesday, November 1, 2011

आज तक

आज फिर  आपके सुपुर्द आलोक  उपाध्याय "नज़र" के शे'रों को कर रहा हूँ- 

टूटे इकबारगी,  बिखर रहे हैं आज तक 
ज़िन्दगी की क़ैद में मर रहे हैं आज तक 

वो बेबाक़ था, दिल को छलनी  कर गया 
हम दिल की सुराखें भर रहे हैं आजतक 

लोग उम्र काट देते है किसी एक के सहारे
उसी के याद में दिन गुज़र रहे है आजतक 
- आलोक  उपाध्याय "नज़र"

2 comments:

  1. आहा सा'ब क्या शे'र निकले हैं कलम से.. एक एक शे'र का जवाब नहीं

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  2. वो बेबाक़ था, दिल को छलनी कर गया
    हम दिल की सुराखें भर रहे हैं आजतक
    बहुत खुबसूरत शेर......

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