Saturday, November 12, 2011

तू भी कल प्यार में हो

आज एक और कलम की इबारत आपके हाथों  में सौंप रहा हूँ. कौशल किशोर जो की एक इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उनकी लिखी एक नज़्म कुछ यूँ हैं - 

मत उठा मेरे प्यार पे ऊँगली ऐ शाहिद 
मत करो दूर दो रूंहों को अलग ऐ शाहिद 
हम भी अल्लाह के बन्दे हैं कुछ तो डर ऐ शाहिद 
कहीं ऐसा न हो कि, तू भी कल प्यार में हो 
और बन जाऊं मैं शाहिद 

- कौशल किशोर, कानपुर
( शाहिद एक अरबी लफ्ज़ है जिसका मायने गवाह है ) 

4 comments:

  1. बहुत खूब शुभकामनायें स्वीकार करें

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद सर आपको.

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  3. एक उम्दा प्रस्तुति!!

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