आजा चल दीवाली मना ले
हुआ जो अस्त कामनाओं का सूरज
दीप जूनून के फिर जला ले
काली रात से खौफ न खा तू
आजा चल दीवाली मना ले
आस विश्वास मूरत लक्ष्मी गणेश की
शीश इनके आगे तू झुका ले
रख वाग्देवी को मस्तिष्क में
खील खुशियों के अब बिखराले
आजा चल दीवाली मना ले
जोड़ मेहनतों के तिनके तू
ऊँची लक्ष्य हटरी बना ले
भर हसरतों के चंडोल दिल में
हृदय का दीवट यूँ सजा ले
आजा चल दीवाली मना ले
कर आह्वान प्रेम लक्ष्मी का
स्नेह आतिश जी भर छुडा ले
दूर कर तम वैर भाव का
भाई दूजों को गले लगा ले
आजा चल दीवाली मना ले
साहित्यकार सपना मांगलिक
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