Thursday, January 28, 2016

मरने के बाद रोहित का पहला इंटरव्यू



नमस्कार, मैं ऋषिराज आज आपको एक ऐसा इन्टरव्यू पढाने जा रहा हूं जो अपने आप में नये किस्म का हैं। मैने मर चुके दलित छात्र रोहित का इन्टरव्यू किया है । ये मेरी एक कोशिश है कि एक शोषित वर्ग के छात्र को कैसी दिक्कते आयी होंगी । यहां आपको यह भी बता दूं यह इन्टरव्यू  काल्पनिक आधार पर किया गया है।इन्टरव्यू के जवाब रोहित के अंतिम पत्र पर आधारित हैं। यह सब मैने इसलिए लिख दिया क्योकी आज कल लोगो की भावनाए इतनी नाजुक और नंगी हो गयी है की कोई भी उन्हें ठेस पहुंचा देता है ।  आपको यह इन्टरव्यू पढ़ने पर बुरा लगे तो माफ किजीएगा अब वक्त आ चुका है कि हम अपनी गहरी नींद से जाग जाये। इस इन्टरव्यू के सवाल वैसे ही है जैसे आप रोजमर्रा के टेलीविजन में खोखली हो चुकी पत्रकारीता के सवाल  में देखते है ।
रिपोर्टर का सवाल तो रोहित मरने के बाद आप कैसा महसूस कर रहे हैं ?

रोहित का जवाब- जी , अच्छा और बेहद हल्का मेहसूस कर रहा हूं । अब केवल मै और मेरी आत्मा हैं । हम अब आराम से अपने मन के मुताबिक  अपने चुने हुए विषयो पर बात कर रहै है । यहा कोई और नही है जो मेरे बात करने या किसी विषय पर राय रखने पर मुझे देशद्रोही करार दे दे ।मैं जिंदा रहने से ज्यादा मर कर खुश हूं।
रिपोर्टर का सवाल रोहित आपने आत्महत्या क्यो की ?
रोहित का जवाब- सब शुन्य हो चुका था । मैं खुद के शरीर और रूह के बीच एक खाई महसूस कर रहा था, दुनिया खोखली है ,सब दिखावटी  लोग है जो इस दुनिया में रहते है ।
रिपोर्टर का सवाल-  क्या आप अपने विश्वविधालय में जातिवादी और देशद्रोही गतिविधी कर रहे थे?
रोहित का जवाब- देश में कई ऐसे वर्ग के लोग है जो किसी के भी फांसी के पक्ष नहीं हैं। कई जज से लेकर मशहूर अभिनेता तक फांसी के पक्ष में नहीं है। हम लोग भी उसी पक्ष का एक हिस्सा थे । देश आजाद है हमें अपनी राय रखने का पुरा अधिकार है तो फिर हम देशद्रोही कैसे हो गये ? अफजल गुरू के वक्त भी कई नेताओ ने फांसी का विरोध किया ये लोग उन्हे देशद्रोही करार क्यो नहीं देते ?
रिपोर्टर का सवाल - तो आप मानते है कि याकूब को गलत सजा दी गयी?
रोहित का जवाब-  नहीं , मैं आपको बता दू कि हम फांसी देने के खिलाफ है किसी भी गुनहगार को फांसी न दी जाये हम इसके पक्ष में हैं। फांसी के अलावा कोई और भी सजा दी जा सकती हैं ।
रिपोर्टर का सवाल- आप दलित है क्या इस वजह से आपके साथ ऐसा किया गया ?
रोहित का जवाब- मैं ऐसा नहीं मानता, मेरा तो बचपन ही एक त्रासदी की तरह गुजरा है और बिल्कुल खाली । बचपन से लेकर अबतक ऐसा ही हुआ है और मेरे से पहले भी यही होता आया है ।
रिपोर्टर का सवाल- क्या आपको मालूम था कि आपके मरने के बाद लोग कैसे रिएक्ट करेंगे ?
रोहित का जवाब- हां शायद मुझे मालूम था कि मेरे मरने पर लोग मुझे कायर कहेंगे, वो यह भी कहेंगे की एक एजेंडे के तहत मै हिन्दुओ को विरोध करता था लेकिन  यकिन मानिए मुझ इन बातों से फर्क नहीं पड़ता । मै इन चीजो का आदी हो चुका हूं और उनके सोच पर अब मुझे तरस आता हैं।
रिपोर्टर का सवाल- आपको सरकार से शिकायत है ?
रोहित का जवाब- नहीं , मुझे अब किसी से शिकायत नहीं है । मैं क्या हम सब इस व्यवसथा के आदि हो चुके है जहां लोकतत्र के नाम पर सरकार जनता पर ही हुकुमत करती है ।
रिपोर्टर का सवाल-  आपने जान देने से पहले अपने परिवार के बारे में नहीं सोचा ?
रोहित का जवाब सब कुछ सोच समझ कर किया । हर पहलु के बारे में सोचा और जब मन से शुन्य हो गया तो मुझे जीने से ज्यादा मरने में खुशी दिख रही थी । तो एक पत्र लिखा और फिर ....
रिपोर्टर का सवाल- आप 13 दिनों तक खुले आसमान में सोते रहे इसके पहले आप और आपके साथियो पर करावाई के लिए सरकार व्दारा लगातार पत्र लिखे जा रहे थे उसपर कोई टिप्पनी करना चाहेगे ?  
 
रोहित का जवाब-  नही, जिसे जो करना  अच्छा लगा उसने वो किया ।यहां सभी दिखवटी लोग है मै किसी से कुछ नही कहुंगा ।
रिपोर्टर का सवाल- आपके दोस्त और आपसे हमदर्दी रखने वाले  लोग सड़क पर है ?
रोहित का जवाब- मुझे नहीं मालूम था कि इतने लोग मेरे लिए खड़े होगे । लेकिन मुझे इस बात का दुख है कि ये लोग अगर शुरू से इतने जागरूक होते और लगातार आवाज उठाते तो किसी दलित को शोषित ही न होना पड़ता ।
रिपोर्टर का सवाल- अब आप मर चुके है लेकिन आपके मरने पर खूब राजनीति हो रही है?
रोहित का जवाब अच्छा है शायद मेरे बाद मेरे किसी दोस्त को ऐसा कदम उठाने की जरूरत न पड़े लेकिन इसकी उम्मीद बहुत कम है ?
रिपोर्टर का सवाल तो आप....(रोहित बीच मे रिपोर्टर को रोकते हुए )
रोहित- आप भी तो मेरे मरने के बाद आये शायद आपको इसी का इंतजार था कि कोई दलित मरे और फिर इसकी मौत पर जी भर कर तमाशा किया जा सके ...
(
रोहित गायब हो जाते है )
रिपोर्टर का मुहं लटक जाता है और फिर वह भी ....

1 comment:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-01-2016) को "प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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